प्यार मांगो सब मिल जायेगा……

  • 0

प्यार मांगो सब मिल जायेगा……

एक महिला अपने घर से बाहर निकली, तो अपने यहाँ तीन बूढ़े आदमी बैठे देखे. वो उनके पास गयी और बोली ,
” मैं आपको नहीं जानती , लेकिन शायद आप लोगों को भूख लगी होगी? आप घर के अन्दर चलकर कुछ खा लीजिये. “

लेकिन उन तीनों ने यह कहकर मना कर दिया कि हम तीनों एक साथ आपके घर नहीं आ सकते. इसका कारण पूछने पर उनमे से एक बूढ़े ने बताना शुरू किया , ” हममे से एक पैसा, दूसरा सफलता और तीसरा प्यार है. अब आप अपने घरवालों से जाकर चर्चा कर लो कि वे हम तीनों में किसे अपने घर बुलाना चाहेंगे.”

महिला घर के भीतर गयी और परिवार के सदस्यों से चर्चा की. किसी ने पैसा, किसी ने सफलता और किसी ने प्यार को निमंत्रित करने के लिए कहा. आखिर कर तै हुआ कि प्यार को ही घर में बुलाया जाए.

महिला बाहर आई और और प्यार को अन्दर आने के लिए कहा. लेकिन यह क्या, प्यार के साथ साथ सफलता और पैसा भी अन्दर आने लगे.
महिला ने कहा,” मैंने तो सिर्फ प्यार को घर में आने को कहा है, फिर आप तीनों एक साथ क्यों आ रहे हैं ?”

तीनों बूढों ने एक साथ कहा कि अगर तुमने पैसा या सफलता में से किसी एक को बुलाया होता तो बाकी दो बाहर ही रह जाते. मगर तुमने प्यार को बुलाया, इसी लिए जहाँ सबके लिए प्यार होगा, वहां पैसा और सफलता अपने आप ही चले आयेंगे…

#OmTtSt


  • 0

झूठ और सच

एक बार गुरु नानक देव जी ने मरदाने को एक टका
दिया और कहा कि एक पैसे का झूठ ला और एक पैसे
का सच ला| परमार्थ की इतनी ऊँची बात को कोई
कोई ही समझ सकता है| मरदाना जब एक टका लेकर झूठ
और सच खरीदने किसी दुकान पर जाता तो लोग
उसका मजाक उड़ाते, कि क्या झूठ और सच भी दुकानों
पर मिलता है|
अंत में मरदाना एक प्यार वाले के पास पहुंचा, उसको
मरना याद था, क्यूंकि जिसको मरना याद रहता है
उसको सिमरन भी याद रहता है| उस व्यक्ति के पास
जाकर मरदाने ने कहा कि एक पैसे का सच दे दो और एक
पैसे का झूठ दे दो| उस आदमी ने अपनी जेब से एक कागज
निकला, उसके दो हिस्से किये और एक पर लिखा कि
‘मरना सच है’ और दूसरे पर लिखा ‘जीना झूठ है’, और
वो कागज मरदाने को दे दिए| मरदाना वो कागज
लेकर गुरु नानक जी के पास वापिस पहुंचा और नमस्कार
कर के कहा कि गुरु जी ये वो कागज की पर्चियां
मिली हैं| बाबा जी ने पर्चियों को पड़ा कि मरना
सच है, तो कहा कि ये ही दुनिया का सब से बड़ा सच
है| दुनिया में जो कोई भी आया है उसने यहाँ से
जाना है, वो अपने आने से पहले अपना मरना लिखवा
कर आया है| अगर कोई यह कहता है कि मेरे संगी-
साथी दुनिया छोड़ कर जा रहे है, और मुझे भी पता
नहीं कब परमात्मा का बुलावा आ जाना है, तो यह
सच है| जिसको अपना मरना याद रहता है वो दुनिया
में कोई बुरा काम नहीं करता और हर वक्त परमात्मा
को याद करता रहता है, उसका सिमरन करता रहता है|
दूसरी पर्ची पर बाबाजी ने ‘जीना झूठ है’ पढ़ कर कहा
कि अगर कोई आदमी यह कहता है कि उसने हमेशा इस
दुनिया में रहना है तो ये सब से बड़ा झूठ है| इस दुनिया
में कोई भी चीज सथाई नहीं है| जनम होने से पहले ही
सब का मरना तय हो जाता है, इस लिए ये कहना सब
से बड़ा झूठ है कि किसी ने हमेशा जीते रहना है|
इस लिए हमें अपनी मौत को कभी भूलना नहीं चाहिए
और उसे याद करके ही सब कर्म करने चाहिए| प्रभु का
सिमरन करना चाहिए और अच्छे काम करने चाहिए|

OM TT ST


  • 0

प्रेम – प्यार और नम्रता

भाई नन्द लाल जी और गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब जी में बहुत प्रेम था । भाई नन्द लाल जी जब तक गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब जी के दर्शन नहीं कर लेते थे, तब तक अपना दिन नहीं शुरू करते थे । एक दिन भाई नन्द लाल जी ने जल्दी कहीं जाना था, लेकिन गुरु साहिब सुबह 4 वजे दरबार में आते थे । उन्होंने सोचा चलो गुरु साहिब जहाँ आराम करते हैं, वहीं चलता हूं… दरवाज़ा खटखटा करके मिल के ही चलता हूँ ।

सुबह 2 वजे गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी अपने ध्यान में बैठे थे, तब नन्द लाल जी ने दरवाजा खटखटाया…..

गुरु साहिब जी ने पूछा कौन है बाहर…?

नन्द लाल जी – मैं हूँ !

फिर पूछा – कौन है बाहर..?

नन्द लाल जी ने कहा…. मैं हूँ ..!

गुरु साहिब ने कहा जहाँ …..जहाँ ”मैं -मैं” होती है वहाँ गुरु का दरवाज़ा नहीं खुलता ।

भाई नन्द लाल जी को महसूस हुआ, कि….. मैंने ये क्या कह दिया…. और फिर दरवाजा खटखटाया ।

तब गुरु साहिब जी ने फिर पूछा कौन है..?

नन्द लाल जी ने कहा…. ”तूँ ही तूँ ” ।

गुरु साहिब ने कहा इस में तो तेरी चतुराई दिख रही है… और जहाँ चतुराई होती है। वहाँ भी गुरु का दरवाज़ा नहीं खुलता ।

ये सुन के नन्द लाल जी रोने लग गये कि इतना ज्ञानी होके भी तुझे इतनी अकल नहीं आयी…… (नन्द लाल जी बहुत ज्ञानी थे, 6 भाषा आती थी , उच्च कोटि के शायर थे ,)

उनका रोना सुन कर….. गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने पूछा बाहर कौन रो रहा है… ?

अब नन्द लाल रोते हुए बोले….. क्या कहूं सच्चे पातशाह….. कौन हूँ ..?
‘मैं’…. कहु तो हौमे…..(अहंकार) आता है….. ‘तूँ’…. कहूं तो चालाकी…. आती है। अब तो आप ही बता दो के…. मैं कौन हूँ…?

और दरवाज़ा खुल गया, आवाज़ आयी बस यही नम्रता होनी चाहिए……जहाँ ये नम्रता है , भोलापन है…. वहाँ गुरु घर के दरवाज़े हमॆशा खुले हैं….. और गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने भाई नन्द लाल को गले से लगा लिया …..

शिक्षा – सतगुरु सेवक के प्रेम – प्यार और नम्रता को देखते हैं ।

संत कहते हैं ” गुरु नहीं भूखा तेरे धन का, उन पर धन है भक्ति नाम का ”….


  • 0
Sant Kabir ji

जीवन जीने की कला

एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वाभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था।

एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुँचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता ?
उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहाँ पहुँचकर वह बोला यह साड़ी कितने की दोगे ?
जुलाहे ने कहा – दस रुपये की।
तब लडके ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिये और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला – मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे ? 
जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा पाँच रुपये।
लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किये और दाम पूछा ?जुलाहे अब भी शांत था। उसने बताया – ढाई रुपये। लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया। अंत में बोला – अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के ?
जुलाहे ने शांत भाव से कहा – बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।
अब लडके को शर्म आई और कहने लगा – मैंने आपका नुकसान किया है। अंतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूँ।
संत जुलाहे ने कहा कि जब आपने साड़ी ली ही नहीं तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूँ ?
लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा कि ,मैं बहुत अमीर आदमी हूँ। तुम गरीब हो। मैं रुपये दे दूँगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे ? और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।
संत जुलाहे मुस्कुराते हुए कहने लगे – तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बीना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल हो जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपये से यह घाटा कैसे पूरा होगा ? जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी।
लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आँखे भर आई और वह संत के पैरो में गिर गया। जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा – बेटा, यदि मैं तुम्हारे रुपये ले लेता तो है उस में मेरा काम चल जाता। पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता।साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूँगा। पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहाँ से लाओगे तुम ?तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।
सीख – संत की उँची सोच-समझ ने लडके का जीवन बदल दिया। 
Sant-Kabir

Sant-Kabir

ये कोई और नहीं ये सन्त थे कबीर दास जी

  • 0

भगवान के दोस्त

एक बच्चा गला देनेवाली सर्दी में नंगे पैर प्लास्टिक के तिरंगे बेच रहा था, लोग उसमे भी मोलभाव कर रहे थे।
एक सज्जन को उसके पैर देखकर बहुत दुःख हुआ, सज्जन ने बाज़ार से नया जूता ख़रीदा और उसे देते हुए कहा “बेटा लो, ये जूता पहन लो”. लड़के ने फ़ौरन जूते निकाले और पहन लिए, उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा था. वो उस सज्जन की तरफ़ पल्टा और हाथ थाम कर पूछा – “आप भगवान हैं ?
उसने घबरा कर हाथ छुड़ाया और कानों को हाथ लगा कर कहा – “नहीं बेटा, नहीं. मैं भगवान नहीं”
लड़का फिर मुस्कराया और कहा
“तो फिर ज़रूर भगवान के दोस्त होंगे, क्योंकि मैंने कल रात भगवान से कहा था कि मुझे नऐ जूते देदें,”
वो सज्जन मुस्कुरा दिया और उसके माथे को प्यार से चूमकर अपने घर की तरफ़ चल पड़ा.
अब वो सज्जन भी जान चुके थे कि भगवान का दोस्त होना कोई मुश्किल काम नहीं..
Come out of your comfort zone, share your richness.

  • 0

सेवा का महत्त्व

जोड़े घर की सेवा का महत्त्व :-

एक बार गुरु अर्जन देव जी के दर्शन के लिए “काबुल” से सँगत “अमृतसर” आई। सँगत बाहर जोड़े  छोड़कर गुरुद्वारा साहब पहुंची।
तभी गुरु साहब को पता चला। गुरु जी बाहर निकल आए। सँगत को गुरु साहब नहीं दिखे। गुरु साहब को बाहर आकर देखा तब गुरु जी अपने हाथों से अपने गले के पवित्र साफे से “जोड़े” साफ़ कर रहे थे। सँगत हैरान परेशान हो गई। भागकर गुरु साहब के हाथ पकड़ लिए। पैरों में गिरकर माथा टेक कर माफ़ी मांगने लगे।

तब गुरु साहब ने ये तुक उचारी

“गुरसिखां की हर धूड़ देह
हम पापी भी गत पाहि।।” अंग 1424

गुरु साहब ने कहा

जो सँगत इतनी दूर से गुरु रामदास जी के दरबार में पहुंची है उस सँगत के चरणों की धुल भी दास अर्जन को मिल जाए तो मेरा पार निस्तारा हो जाए।

क्या हम इसी भावना से “जोड़े घर” में सेवा करेंगे ?

धन है गुरु साहब जिन्होंने हर एक बात को पहले खुद किया और बाद में सँगत ने अनुकरण किया। किसी बात में जबरदस्ती नहीं।

चलो “जोड़ेघर” की सेवा इस भाव से कर के अपना जीवन सफल करें। जब गुरु साहब अपने आप को “पापी” कहते हो तो हम क्या हैं ???   सोचो सोचो और करके देखो यह सेवा अपने मन से अहंकार निकाल कर नम्रता लाने के लिए।

Shared by Meena Mehta


  • 1

जो चाहोगे सो पाओगे

Meditation जो चाहोगे सो पाओगे

Meditation जो चाहोगे सो पाओगे

Meditate

💐 जो चाहोगे सो पाओगे 💐

एक साधु था , वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था , “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”

बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।

एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी, “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।” ,और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।

उसने साधु से पूछा – “महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैँ चाहता हूँ?”

साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहते हो मैँ उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी।
लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या?”

युवक बोला-  “मेरी एक ही ख्वाहिश है मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ।”

साधू बोला , “कोई बात नहीँ मैँ तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे !”

और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा , “ पुत्र , मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो ”

युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसकी दूसरी हथेली , पकड़ते हुए बोला , “पुत्र , इसे पकड़ो , यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है , लोग इसे “ धैर्य ” कहते हैं , जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलें तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना , याद रखना जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है।”

युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्बाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा ।

और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है।

समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।

💐 तात्पर्य 💐
अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्बाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।


  • 1

सच का ज्ञान

Sunday Stories

Sunday Stories


एक जौहरी के निधन के बाद उसका परिवार संकट में पड़ गया। 
खाने के भी लाले पड़ गए। एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को नीलम का एक हार देकर कहा- ‘बेटा, इसे अपने चाचा की दुकान पर ले जाओ। कहना इसे बेचकर कुछ रुपये दे दें।

बेटा वह हार लेकर चाचा जी के पास गया। चाचा ने हार को अच्छी तरह से देख परखकर कहा- बेटा, मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है। थोड़ा रुककर बेचना, अच्छे दाम मिलेंगे। उसे थोड़े से रुपये देकर कहा कि तुम कल से दुकान पर आकर बैठना।

अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान पर जाने लगा और वहां हीरों रत्नो की परख का काम सीखने लगा। एक दिन वह बड़ा पारखी बन गया। लोग दूर-दूर से अपने हीरे की परख कराने आने लगे।

एक दिन उसके चाचा ने कहा, बेटा अपनी मां से वह हार लेकर आना और कहना कि अब बाजार बहुत तेज है, उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे। मां से हार लेकर उसने परखा तो पाया कि वह तो नकली है। वह उसे घर पर ही छोड़ कर दुकान लौट आया।

चाचा ने पूछा, हार नहीं लाए? उसने कहा, वह तो नकली था।

तब चाचा ने कहा- जब तुम पहली बार हार लेकर आये थे, तब मैं उसे नकली बता देता तो तुम सोचते कि आज हम पर बुरा वक्त आया तो चाचा हमारी चीज को भी नकली बताने लगे। आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो गया तो पता चल गया कि हार सचमुच नकली है।

सच यह है कि ज्ञान के बिना इस संसार में हम जो भी सोचते, देखते और जानते हैं, सब गलत है। और ऐसे ही गलतफहमी का शिकार होकर रिश्ते बिगडते है। 

ज़रा सी रंजिश पर, ना छोड़ किसी अपने का दामन ।
ज़िंदगी बीत जाती है, अपनो को अपना बनाने में ।। 

HriOmTtSt