Category Archives: Ananta (infinite) Blog

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प्यार मांगो सब मिल जायेगा……

एक महिला अपने घर से बाहर निकली, तो अपने यहाँ तीन बूढ़े आदमी बैठे देखे. वो उनके पास गयी और बोली ,
” मैं आपको नहीं जानती , लेकिन शायद आप लोगों को भूख लगी होगी? आप घर के अन्दर चलकर कुछ खा लीजिये. “

लेकिन उन तीनों ने यह कहकर मना कर दिया कि हम तीनों एक साथ आपके घर नहीं आ सकते. इसका कारण पूछने पर उनमे से एक बूढ़े ने बताना शुरू किया , ” हममे से एक पैसा, दूसरा सफलता और तीसरा प्यार है. अब आप अपने घरवालों से जाकर चर्चा कर लो कि वे हम तीनों में किसे अपने घर बुलाना चाहेंगे.”

महिला घर के भीतर गयी और परिवार के सदस्यों से चर्चा की. किसी ने पैसा, किसी ने सफलता और किसी ने प्यार को निमंत्रित करने के लिए कहा. आखिर कर तै हुआ कि प्यार को ही घर में बुलाया जाए.

महिला बाहर आई और और प्यार को अन्दर आने के लिए कहा. लेकिन यह क्या, प्यार के साथ साथ सफलता और पैसा भी अन्दर आने लगे.
महिला ने कहा,” मैंने तो सिर्फ प्यार को घर में आने को कहा है, फिर आप तीनों एक साथ क्यों आ रहे हैं ?”

तीनों बूढों ने एक साथ कहा कि अगर तुमने पैसा या सफलता में से किसी एक को बुलाया होता तो बाकी दो बाहर ही रह जाते. मगर तुमने प्यार को बुलाया, इसी लिए जहाँ सबके लिए प्यार होगा, वहां पैसा और सफलता अपने आप ही चले आयेंगे…

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झूठ और सच

एक बार गुरु नानक देव जी ने मरदाने को एक टका
दिया और कहा कि एक पैसे का झूठ ला और एक पैसे
का सच ला| परमार्थ की इतनी ऊँची बात को कोई
कोई ही समझ सकता है| मरदाना जब एक टका लेकर झूठ
और सच खरीदने किसी दुकान पर जाता तो लोग
उसका मजाक उड़ाते, कि क्या झूठ और सच भी दुकानों
पर मिलता है|
अंत में मरदाना एक प्यार वाले के पास पहुंचा, उसको
मरना याद था, क्यूंकि जिसको मरना याद रहता है
उसको सिमरन भी याद रहता है| उस व्यक्ति के पास
जाकर मरदाने ने कहा कि एक पैसे का सच दे दो और एक
पैसे का झूठ दे दो| उस आदमी ने अपनी जेब से एक कागज
निकला, उसके दो हिस्से किये और एक पर लिखा कि
‘मरना सच है’ और दूसरे पर लिखा ‘जीना झूठ है’, और
वो कागज मरदाने को दे दिए| मरदाना वो कागज
लेकर गुरु नानक जी के पास वापिस पहुंचा और नमस्कार
कर के कहा कि गुरु जी ये वो कागज की पर्चियां
मिली हैं| बाबा जी ने पर्चियों को पड़ा कि मरना
सच है, तो कहा कि ये ही दुनिया का सब से बड़ा सच
है| दुनिया में जो कोई भी आया है उसने यहाँ से
जाना है, वो अपने आने से पहले अपना मरना लिखवा
कर आया है| अगर कोई यह कहता है कि मेरे संगी-
साथी दुनिया छोड़ कर जा रहे है, और मुझे भी पता
नहीं कब परमात्मा का बुलावा आ जाना है, तो यह
सच है| जिसको अपना मरना याद रहता है वो दुनिया
में कोई बुरा काम नहीं करता और हर वक्त परमात्मा
को याद करता रहता है, उसका सिमरन करता रहता है|
दूसरी पर्ची पर बाबाजी ने ‘जीना झूठ है’ पढ़ कर कहा
कि अगर कोई आदमी यह कहता है कि उसने हमेशा इस
दुनिया में रहना है तो ये सब से बड़ा झूठ है| इस दुनिया
में कोई भी चीज सथाई नहीं है| जनम होने से पहले ही
सब का मरना तय हो जाता है, इस लिए ये कहना सब
से बड़ा झूठ है कि किसी ने हमेशा जीते रहना है|
इस लिए हमें अपनी मौत को कभी भूलना नहीं चाहिए
और उसे याद करके ही सब कर्म करने चाहिए| प्रभु का
सिमरन करना चाहिए और अच्छे काम करने चाहिए|

OM TT ST


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प्रेम – प्यार और नम्रता

भाई नन्द लाल जी और गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब जी में बहुत प्रेम था । भाई नन्द लाल जी जब तक गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब जी के दर्शन नहीं कर लेते थे, तब तक अपना दिन नहीं शुरू करते थे । एक दिन भाई नन्द लाल जी ने जल्दी कहीं जाना था, लेकिन गुरु साहिब सुबह 4 वजे दरबार में आते थे । उन्होंने सोचा चलो गुरु साहिब जहाँ आराम करते हैं, वहीं चलता हूं… दरवाज़ा खटखटा करके मिल के ही चलता हूँ ।

सुबह 2 वजे गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी अपने ध्यान में बैठे थे, तब नन्द लाल जी ने दरवाजा खटखटाया…..

गुरु साहिब जी ने पूछा कौन है बाहर…?

नन्द लाल जी – मैं हूँ !

फिर पूछा – कौन है बाहर..?

नन्द लाल जी ने कहा…. मैं हूँ ..!

गुरु साहिब ने कहा जहाँ …..जहाँ ”मैं -मैं” होती है वहाँ गुरु का दरवाज़ा नहीं खुलता ।

भाई नन्द लाल जी को महसूस हुआ, कि….. मैंने ये क्या कह दिया…. और फिर दरवाजा खटखटाया ।

तब गुरु साहिब जी ने फिर पूछा कौन है..?

नन्द लाल जी ने कहा…. ”तूँ ही तूँ ” ।

गुरु साहिब ने कहा इस में तो तेरी चतुराई दिख रही है… और जहाँ चतुराई होती है। वहाँ भी गुरु का दरवाज़ा नहीं खुलता ।

ये सुन के नन्द लाल जी रोने लग गये कि इतना ज्ञानी होके भी तुझे इतनी अकल नहीं आयी…… (नन्द लाल जी बहुत ज्ञानी थे, 6 भाषा आती थी , उच्च कोटि के शायर थे ,)

उनका रोना सुन कर….. गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने पूछा बाहर कौन रो रहा है… ?

अब नन्द लाल रोते हुए बोले….. क्या कहूं सच्चे पातशाह….. कौन हूँ ..?
‘मैं’…. कहु तो हौमे…..(अहंकार) आता है….. ‘तूँ’…. कहूं तो चालाकी…. आती है। अब तो आप ही बता दो के…. मैं कौन हूँ…?

और दरवाज़ा खुल गया, आवाज़ आयी बस यही नम्रता होनी चाहिए……जहाँ ये नम्रता है , भोलापन है…. वहाँ गुरु घर के दरवाज़े हमॆशा खुले हैं….. और गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने भाई नन्द लाल को गले से लगा लिया …..

शिक्षा – सतगुरु सेवक के प्रेम – प्यार और नम्रता को देखते हैं ।

संत कहते हैं ” गुरु नहीं भूखा तेरे धन का, उन पर धन है भक्ति नाम का ”….


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भगवान से अंतर

भगवान से अंतर

कभी आपने महसूस किया है कि
बस में सफर करते समय अगर,
हम पीछे की सीट में बैठते हैं,
तो धक्के ज्यादा लगते हैं ।

जैसे जैसे हम,
आगे की सीट में जाते हैं,
तो धक्के कम लगते हैं ।

ड्राइवर और हमारी सीट में
अंतर ज़्यादा, तो धक्के ज़्यादा ।

ड्राइवर और हमारी सीट में
अंतर कम, तो धक्के कम ।

हमारे जीवन रूपी गाड़ी के
ड्राइवर / सारथी, भगवान हैं ।

भगवान से अंतर ज़्यादा,
तो धक्के ज़्यादा,

भगवान से अंतर कम,
तो धक्के कम ।


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Guru Arjan Dev ji Saheb

सत्संग प्रेम

 

गुरु अर्जुन साहेब जी महाराज का एक सिख था, जिसका नाम था भाई माधो दास, भाई माधो दास लाहौर में रहते थे, और बड़े सत्संगी थे,
सतसंगत से इन्हें इतना प्रेम था कि ये सतसंग की कहीं भी सूचना मिले तो ये सब काम धंधा छोड़ सत्संग करने चले जाते थे, घर के बाकी जन उनके इस जीवन से बहुत परेशान थे, वो अक्सर उन्हें निक्कमा, निठल्ला, आवारा आदि ताने मारा करते थे, पर भाई माधो दास इन सब से बेपरवाह सत्संग प्रेम में आकंठ डूबे थे|

लाहौर में बढ़ती चोरियों से परेशान हो, लाहौर के नवाब ने मुनादी करवा दी, रात के एक निश्चित समय (रात 10 बजे) के बाद अगर कोई नगर में बिना किसी कारण घूमता पाया गया, और सिपाहियो द्वारा पकड़े जाने पर अगर उसका कोई जमानती ना बना या मिला तो उसे बिना कोई सुनवाई, चोर मान कर सूली पर चढ़ा दिया जाएगा, मृत्यु का भय, सारे नगर वाले अब रात्रि से पहले ही अपने घर में वापिस आ कर बैठ जाते|

एक दिन सत्संग की सूचना मिली, दूसरे नगर में था, भाई माधो दास तो चल पड़े, सत्संग से लौटते बहुत देर हो गई, रात को घर पहुचने का निश्चित समय तो कब का बीत चुका था, सिपाहियों ने पकड़ लिया, पूछने पर घर का पता बताया,,घर आ कर सिपाहियों ने दरवाजा खटखटाया, भाई माधोदास को सिपाहियों के हाथों पकड़ा देख कर उनके परिवार के लोग ये सोच कर डर गए कि ये शायद किसी चोर के साथ पकड़ा गया है, और सिपाही इसे घर ला कर हमें इसका साथी समझ कर पकड़ने आये हैं|

क्या तुम इसे जानते हो? सिपाही ने पूछा
–  जी, है तो हमारे ही घर का प्राणी, लेकिन हमारा इससे कोई वास्ता नही है, सारा सारा दिन ना जाने कहाँ कहाँ फिरता रहता है, किन लोगों के साथ रहता है, सोच लो, तुम्हारा ये कहना इसकी जान जाने का सबब बन सकता है, सिपाही ने कहा
– हमारे लिए तो कब का मर चुका है, यहां रह कर भी तो मुफ़्त की रोटियाँ ही तोड़ता है, आप इसे ले जाइए, हमारी जान भखशे, परिवार के लोग चिल्लाए|
अब बिना किसी और सुनवाई और दलील के, भाई माधो दास को सूली पर चढाने की तैयारी शुरू हो गई, लकड़ी के इक भारी टुकड़े को पेन्सिल की नोंक की भाँति नुकीला शूल बनाया गया, अब ये नोंक भाई माधोदास के शरीर में भेद कर उन्हें शहीद करना था|

भाई माधो दास जी ने नेत्र बन्द किये, और गुरु अर्जुन साहेब महाराज के चरणों में अरदास की
–  हे दाता, आप जानते हैं ये लोग अंजान हैं और ये मुझे बिना किसी अपराध के शहीद कर रहे हैं, हे दयाल सतगुरु, दया करें, अगर जीवन का अंत इसी तरह होना है तो ऐसा ही सही,जैसी आप की इच्छा, अगर लायक समझे तो मुझे अपने श्री चरणों में निवास बख्शें | इधर एक सूखे पेड़ पर भाई माधो दास को बाँध कर जैसे ही शूल उनके शरीर पर सिपाही प्रहार करने लगे, तो क्या देखते हैं, वो सारा का सारा सूखा वृक्ष एक घना छायादार और फलदार वृक्ष बन गया,,वो शूल की नोंक फूलो के एक गुलदस्ते सी बन गई |

सिपाही भागे भागे आए और नवाब को सारी बात बताई, नवाब समझ गया कि ये किसी फकीर को अकारण ही मृत्यु देने वाले थे वो आया और भाई माधो दास जी के चरणों पर शीश झुका कर बोला
– ए खुदा के बन्दे, हमें माफ़ कर दे, हम से बहुत बड़ा गुनाह हो जाता,,जिस कानून के कारण आप जैसे नेक इंसा की मृत्यु हो जाती वो कानून हम अभी बर्खास्त करते हैं, लेकिन मैं आप से एक बात पूछना चाहता हूँ मृत्यु को इतना निकट जान कर भी आप को जरा भी भय नही लगा

भाई माधो दास जी ने कहा – नवाब साहेब, जिस मन को मेरे गुरु नानक, अपने चरणों में जोड़ लेते हैं, उस मन में दाता कभी भी भय, दुख, संताप नही आने देते, मेरे गुरु तो अपने सेवकों से इतना प्यार करते हैं कि दुख, पीड़ा तो वो अपने सेवको को सपने में भी नही होने देते, मेरे धन्न गुरु नानक के पंचम रूप धन्न गुरु अर्जुन साहेब जी की ही ये वडियाई देखो, नवाब साहेब, मैं समाजिक रुतबे में आप के सामने चींटी जितना भी नही हूँ, पर मेरे सतगुरु ने आज आप के संग पूरे नगर को मेरे सामने झुका दिया है, मैं अपना बचा जीवन अब उनके सानिध्य में रह कर उनकी सेवा करते हुए ही बिताना चाहता हूँ, ये कह कर भाई माधो दास जी सब संसारिक रिश्तों को छोड़ कर गुरु नगरी अमृतसर साहेब में गुरु अर्जुन साहेब जी के दर्शन करने के लिए विदा हो गए

धन्न भाई माधो दास, धन्न गुरु अर्जुन साहेब जी महाराज,


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krishna-arjun

ईश्वर का कार्य

krishna_arjuna_Mahabharata-Kurukshetra

krishna_arjuna_Mahabharata-Kurukshetra

एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते देखा। अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दे दी। जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर लौट चला। किन्तु उसका दुर्भाग्य उसके साथ चल रहा था, राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली।

ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा। ब्राहमण ने सारा विवरण अर्जुन को बता दिया, ब्राहमण की व्यथा सुनकर अर्जुन को फिर से उस पर दया आ गयी अर्जुन ने विचार किया और इस बार उन्होंने ब्राहमण को मूल्यवान एक माणिक दिया।

ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा उसके घर में एक पुराना घड़ा था जो बहुत समय से प्रयोग नहीं किया गया था,ब्राह्मण ने चोरी होने के भय से माणिक उस घड़े में छुपा दिया। किन्तु उसका दुर्भाग्य, दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी… इस बीच ब्राहमण की स्त्री नदी में जल लेने चली गयी किन्तु मार्ग में ही उसका घड़ा टूट गया, उसने सोंचा, घर में जो पुराना घड़ा पड़ा है उसे ले आती हूँ, ऐसा विचार कर वह घर लौटी और उस पुराने घड़े को ले कर चली गई और जैसे ही उसने घड़े को नदी में डुबोया वह माणिक भी जल की धारा के साथ बह गया। ब्राहमण को जब यह बात पता चली तो अपने भाग्य को कोसता हुआ वह फिर भिक्षावृत्ति में लग गया।

अर्जुन और श्री कृष्ण ने जब फिर उसे इस दरिद्र अवस्था में देखा तो जाकर उसका कारण पूंछा। सारा वृतांत सुनकर अर्जुन को बड़ी हताशा हुई और मन ही मन सोचने लगे इस अभागे ब्राहमण के जीवन में कभी सुख नहीं आ सकता। अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई।उन्होंने उस ब्राहमण को दो पैसे दान में दिए।

तब अर्जुन ने उनसे पुछा “प्रभु मेरी दी मुद्राए और माणिक भी इस अभागे की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो इन दो पैसो से इसका क्या होगा” ?यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुरा भर दिए और अर्जुन से उस ब्राहमण के पीछे जाने को कहा। रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि “दो पैसो से तो एक व्यक्ति के लिए भी भोजन नहीं आएगा प्रभु ने उसे इतना तुच्छ दान क्यों दिया ? प्रभु की यह कैसी लीला है “?

ऐसा विचार करता हुआ वह चला जा रहा था उसकी दृष्टि एक मछुवारे पर पड़ी, उसने देखा कि मछुवारे के जाल में एक मछली फँसी है, और वह छूटने के लिए तड़प रही है । ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी। उसने सोचा “इन दो पैसो से पेट की आग तो बुझेगी नहीं। क्यों? न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये”।

यह सोचकर उसने दो पैसो में उस मछली का सौदा कर लिया और मछली को अपने कमंडल में डाल लिया। कमंडल में जल भरा और मछली को नदी में छोड़ने चल पड़ा। तभी मछली के मुख से कुछ निकला।उस निर्धन ब्राह्मण ने देखा ,वह वही माणिक था जो उसने घड़े में छुपाया था। ब्राहमण प्रसन्नता के मारे चिल्लाने लगा “मिल गया, मिल गया ”..!!!

तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहाँ से गुजर रहा था जिसने ब्राहमण की मुद्राये लूटी थी। उसने ब्राह्मण को चिल्लाते हुए सुना “ मिल गया मिल गया ” लुटेरा भयभीत हो गया। उसने सोंचा कि ब्राहमण उसे पहचान गया है और इसीलिए चिल्ला रहा है, अब जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा। इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा। और उससे लूटी हुई सारी मुद्राये भी उसे वापस कर दी।

यह देख अर्जुन प्रभु के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके। अर्जुन बोले,प्रभु यह कैसी लीला है? जो कार्य थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक नहीं कर सका वह आपके दो पैसो ने कर दिखाया।

श्री कृष्णा ने कहा “अर्जुन यह अपनी सोंच का अंतर है, जब तुमने उस निर्धन को थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक दिया तब उसने मात्र अपने सुख के विषय में सोचा। किन्तु जब मैनें उसको दो पैसे दिए। तब उसने दूसरे के दुःख के विषय में सोचा। इसलिए हे अर्जुन-सत्य तो यह है कि, जब आप दूसरो के दुःख के विषय में सोंचते है, जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं, तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं, और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं।

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बादशाह और फकीर

~ एक सुन्दर बोध कथा ~ 

एक फकीर बहुत दिनों तक बादशाह के साथ रहा बादशाह का बहुत प्रेम उस फकीर पर हो गया। प्रेम भी इतना कि बादशाह रात को भी उसे अपने कमरे में सुलाता। कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते।

एक दिन दोनों शिकार खेलने गए और रास्ता भटक गए। भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ पर एक ही फल लगा था।

बादशाह ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा। बादशाह ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा
फकीर को दिया।

फकीर ने टुकड़ा खाया और बोला, ‘बहुत स्वादिष्ट! ऎसा फल कभी नहीं खाया। एक टुकड़ा और दे दें। दूसरा टुकड़ा भी फकीर को मिल गया।फकीर ने एक टुकड़ा और बादशाह से मांग लिया। इसी तरह फकीर ने पांच टुकड़े मांग कर खा लिए। जब फकीर ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो बादशाह ने कहा, ‘यह सीमा से बाहर है। आखिर मैं भी तो भूखा हूं।

मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।’ और सम्राट ने फल का टुकड़ा मुंह में रख लिया। मुंह में रखते ही राजा ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह कड़वा था। राजा बोला, ‘तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?

उस फकीर का उत्तर था, ‘जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं? सब टुकड़े इसलिए लेता गया ताकि आपको पता न चले।

दोस्तों जँहा मित्रता हो वँहा संदेह न हो, आओ कुछ ऐसे रिश्ते रचे…

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जो चाहोगे सो पाओगे

Meditation जो चाहोगे सो पाओगे

Meditation जो चाहोगे सो पाओगे

Meditate

💐 जो चाहोगे सो पाओगे 💐

एक साधु था , वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था , “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”

बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।

एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी, “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।” ,और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।

उसने साधु से पूछा – “महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैँ चाहता हूँ?”

साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहते हो मैँ उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी।
लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या?”

युवक बोला-  “मेरी एक ही ख्वाहिश है मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ।”

साधू बोला , “कोई बात नहीँ मैँ तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे !”

और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा , “ पुत्र , मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो ”

युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसकी दूसरी हथेली , पकड़ते हुए बोला , “पुत्र , इसे पकड़ो , यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है , लोग इसे “ धैर्य ” कहते हैं , जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलें तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना , याद रखना जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है।”

युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्बाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा ।

और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है।

समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।

💐 तात्पर्य 💐
अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्बाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।


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The Spontaneous Change

The Spontaneous Change

The Spontaneous Change

An old farmer lived on a farm in the mountains with his young grandson. Each morning, Grandpa was up early sitting at the kitchen table reading his Bhagavat Geeta.

His grandson wanted to be just like him and tried to imitate him in every way he could.

One day the grandson asked, “Grandpa! I try to read the Bhagawat Geeta just like you but I don’t understand it, and what I do understand, I forget as soon as I close the book. What good does reading the Bhagawat Geeta do?”

The Grandfather quietly turned from putting coal in the stove and replied, “Take this coal basket down to the river and bring me back a basket of water.”

The boy did as he was told, but all the water leaked out before he got back to the house.

The grandfather laughed and said, “You’ll have to move a little faster next time,” and sent him back to the river with the basket to try again.

This time the boy ran faster, but again the basket was empty before here turned home. Out of breath, he told his grandfather that it was impossible to carry water in a basket, and he went to get a bucket instead.

The old man said, “I don’t want a bucket of water; I want a basket of water. You’re just not trying hard enough,” and he went out the door to watch the boy try again.

At this point, the boy knew it was impossible, but he wanted to show his grandfather that even if he ran as fast as he could, the water would leak out before he got back to the house. The boy again dipped the basket into river and ran hard, but when he reached his grandfather the basket was again empty.

Out of breath, he said, “SEE…. it is useless!”

“So you think it is useless?” The old man said, “Look at the basket.”

The boy looked at the basket and for the first time realized that the basket was different. It had been transformed from a dirty old coal basket and was now clean, inside and out.

“Son, that’s what happens when you read the Bhagavat Geeta. You might not understand or remember everything, but when you read it, you will be changed, inside and out. That is the work of GOD in our lives.”

This is beautiful story – Can’t say when it might inspire one.

Bhagavat Geeta is very deep and inspiring. That’s why we read the Bhagavat Geeta, even if we can’t understand it? Here this story that tells you why reading good articles, books, and anecdotes / stories not only add values in life, it also help us understand life as a whole.

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